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6 August 2024
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मध्य प्रदेश, भारत का एक प्रमुख राज्य है जो कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की प्रमुख फसलों में धान का विशेष स्थान है। धान की खेती यहाँ के किसानों के जीवनयापन का मुख्य स्रोत है, लेकिन इसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से एक प्रमुख समस्या है खैरा रोग, जो धान की फसल को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इस लेख में, हम खैरा रोग के कारण, लक्षण, प्रभाव, प्रबंधन और रोकथाम के उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।


खैरा रोग के कारण

मिट्टी में जिंक की कमी: यह रोग तब होता है जब मिट्टी में जिंक की मात्रा कम हो जाती है। जिंक एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है जो पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक होता है। मिट्टी की उच्च पीएच: अगर मिट्टी की पीएच अधिक होती है, तो यह जिंक की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है। अधिक सिंचाई और जल जमाव: अधिक सिंचाई और जल जमाव के कारण मिट्टी में जिंक की कमी हो सकती है, जिससे खैरा रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग: नाइट्रोजन उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग भी जिंक की उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है।


लक्षण

पत्तियों पर पीले धब्बे: रोगग्रस्त पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं। पत्तियों का सूखना: रोग के बढऩे पर पत्तियाँ सूखने लगती हैं और उनमें नमी की कमी हो जाती है। पौधों का धीमा विकास: जिंक की कमी के कारण पौधों का विकास धीमा हो जाता है और उनकी ऊंचाई कम हो जाती है। जड़ प्रणाली का कमजोर होना: जड़ प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे पौधे आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाते।


प्रभाव

उत्पादन में कमी: खैरा रोग के कारण धान की फसल का उत्पादन कम हो जाता है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है। गुणवत्ता में कमी: रोगग्रस्त फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, जिससे बाजार में उसकी कीमत कम हो जाती है। पौधों की मृत्यु: यदि समय पर उपचार न किया जाए, तो पौधों की मृत्यु भी हो सकती है।


प्रबंधन और रोकथाम

जिंक उर्वरकों का उपयोग: मिट्टी में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। जिंक सल्फेट एक प्रमुख जिंक उर्वरक है जिसे धान की फसल में प्रयोग किया जा सकता है। मिट्टी परीक्षण: नियमित रूप से मिट्टी का परीक्षण करवायें ताकि जिंक की कमी का पता चल सके और समय पर उचित उपाय किए जा सकें। संतुलित उर्वरक उपयोग: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम के साथ जिंक का संतुलित उपयोग करें ताकि मिट्टी में सभी आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हों। सिंचाई का प्रबंधन: अधिक सिंचाई और जल जमाव से बचें ताकि मिट्टी में जिंक की उपलब्धता बनी रहे। जैविक खेती: जैविक खेती के तरीकों का अपनायें जिससे मिट्टी की संरचना और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार हो सके।


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