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9 May 2024
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अरहर की खेती के लिए टॉप 3 किस्मे, इन किस्मों की खासियत और लाभ

पूसा अरहर-16 किस्म:
  • 120 दिन में पकने वाली किस्म
  • बारिश के मौसम में उगाई जा सकती है
  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है
  • राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अनुकूल है
  • औसतन 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज


अरहर की पूसा 992 किस्म:

  • 120 से 128 दिन में पकने वाली किस्म
  • जुलाई माह में उगाई जा सकती है, अक्टूबर में तैयार हो जाती है
  • सभी फलियां एक साथ पकती हैं
  • प्रति एकड़ 7 क्विंटल तक की उपज


अरहर की आईपीए 203 किस्म:

  • 150 दिन में पकने वाली किस्म
  • रोगों का प्रकोप नहीं होता है
  • औसत पैदावार 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

  • अरहर की बुवाई का तरीका:

    • अरहर दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।
    • बुवाई से पहले खेत में गोबर की कंपोस्ट खाद मिलाना चाहिए।
    • खेत की गहरी जताई करें और जल निकासी का प्रबंध करें।
    • अरहर की बुवाई असिंचित क्षेत्रों में जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है।
    • बुवाई करते समय बीजों की कतार से कतार की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए।
    • बीजों को उपचारित करने के बाद ही बुवाई करें, जैसे कि फफूंदनाशक दवा और रायजोबियम कल्चर का उपयोग करके।

  • दलहन फसलों में अरहर का भी महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे तूअर दाल भी कहा जाता है। किसानों को अच्छा लाभ पाने के लिए इसकी अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों की खेती करनी चाहिए। वर्तमान में बाजार में अरहर की अनेक ऐसी उन्नत किस्में हैं जो किसानों को कम समय में अधिक उत्पादन प्राप्त करने की संभावना प्रदान करती हैं। इसके बारे में माहिर कहते हैं कि अरहर की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी सौदा साबित हो रही है।


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