
पंजाब सरकार सीधे बीजारोपण (DSR) या 'तर-वत्तर' तकनीक को बढ़ावा दे रही है। इस तकनीक से पानी की खपत में 15% से 20% की कमी हो सकती है और यह कम श्रम की आवश्यकता के साथ 7-10 दिन पहले फसल तैयार करती है। इससे किसानों को धान के पुआल को संभालने के लिए अधिक समय मिलता है।
फायदे और सरकारी प्रोत्साहनों (1500 रुपये प्रति एकड़) के बावजूद, पंजाब में DSR तकनीक का व्यापक रूप से उपयोग नहीं हो रहा है। पिछले साल, 79 लाख एकड़ में से केवल 1.73 लाख एकड़ पर DSR का उपयोग हुआ। इस साल का लक्ष्य 7 लाख एकड़ पर DSR लाना है, जो कुल चावल क्षेत्र का 10% से भी कम है।
प्रक्रिया और आवश्यकताएं:
DSR में बीजों को सीधे बोया जाता है, जो नर्सरी तैयार करने और पौध रोपण की आवश्यकता को समाप्त करता है। बीज को फफूंदनाशक घोल में भिगोकर और सुखाकर बोया जाता है। पहली सिंचाई 21 दिन बाद और उसके बाद 7-10 दिन के अंतराल पर होती है, कुल मिलाकर 14-17 बार सिंचाई की जाती है।
भारी मिट्टी के लिए उपयुक्तता:DSR के लिए मिट्टी की बनावट महत्वपूर्ण है। हल्की बनावट वाली मिट्टी में DSR नहीं करना चाहिए क्योंकि यह पानी को अच्छी तरह से नहीं रोक पाती। भारी या मध्यम बनावट वाली मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है।
मिट्टी में लौह तत्व की कमी और खरपतवार की समस्या वाले खेतों में DSR नहीं करना चाहिए। लौह तत्व युक्त मिट्टी DSR के लिए आदर्श है। लौह तत्व की कमी उपज पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है और किसानों को आर्थिक नुकसान हो सकता है।
DSR की सफलता के लिए किसानों को व्यापक रूप से शिक्षित करना आवश्यक है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि किसानों को प्रशिक्षण और सहायता प्रदान की जाए ताकि वे इस तकनीक को आत्मविश्वास के साथ अपना सकें।
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