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कन्नौज के किसान पारंपरिक आलू की खेती के बाद मक्का की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। मक्का की खेती साल में दो बार होती है: एक जायद और दूसरा खरीफ के मौसम में।
जिला कृषि अधिकारी के अनुसार, सरकारी केंद्रों पर कई वैरायटी के मक्का किसानों के लिए बहुत फायदेमंद हैं। इन मक्का पर किसानों को अनुदान भी मिलता है, जिससे उनकी आमदनी दोगुनी हो जाती है।
बारिश शुरू होने पर मक्का की बुवाई करनी चाहिए। सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर 10 से 15 दिन पूर्व बुवाई की जा सकती है। बीज की बुवाई मेड़ के किनारे व ऊपर 3 से 5 सेमी की गहराई पर करनी चाहिए। बुवाई के एक माह बाद मिट्टी चढ़ाने का काम करना चाहिए।
बुवाई के समय खेत में पौधों की संख्या 55 से 80 हजार प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी होनी चाहिए। देरी से पकने वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 75 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी होनी चाहिए। हरे चारे की फसल के रूप में मक्का की खेती के लिए कतार से कतार की दूरी 40 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 25 सेमी होनी चाहिए।
सरकारी केंद्रों पर कावेरी, एडवेंटा, त्रिमूर्ति कंपनियों के बीज उपलब्ध हैं। किसान पूसा जवाहर हाइब्रिड मक्का-1, पूसा एच एम 9 इम्प्रूव्ड, पूसा एच एम 8 इम्प्रूव्ड, पूसा एच एम 4 इम्प्रूव्ड, पूसा सुपर स्वीट कॉर्न -1, पूसा विवेक हाइब्रिड 27 इम्प्रूव्ड बीज का प्रयोग कर सकते हैं, जो अधिक लाभकारी साबित होते हैं।
सरकारी क्रय केंद्र पर पंजीकृत किसान और जो किसान 2 हेक्टेयर तक की खेती करते हैं, उन्हें मक्का के सभी बीजों पर 50% तक का अनुदान मिलता है। यह अनुदान किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होता है।