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10 December 2024
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यूरिया और नैनो-यूरिया का जिंक उर्वरीकरण के साथ सापेक्ष प्रदर्शन: वृद्धि, उत्पादकता, और नाइट्रोजन उपयोग दक्षता पर प्रभाव" नामक एक महत्वपूर्ण अध्ययन ने भारतीय कृषि में नैनो-यूरिया के उपयोग पर नई जानकारी प्रदान की है। यह शोध 2021-2023 के बीच आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली में किया गया और इसका मुख्य ध्यान वसंत गेहूं (ट्रिटिकम एस्टिवम) पर था।


नैनो-यूरिया और जिंक का प्रदर्शन

शोध में पारंपरिक यूरिया और नैनो-यूरिया के फोलियर स्प्रे का विभिन्न जिंक उर्वरीकरण तकनीकों से तुलना की गई। नतीजों से पता चला कि 130 किलो एन/हेक्टेयर पारंपरिक यूरिया का उपयोग नैनो-यूरिया से बेहतर था, खासकर अनाज और भूसे की पैदावार में। हालांकि, नैनो-यूरिया ने नाइट्रोजन की खुराक को कम किया, लेकिन यह फसल की नाइट्रोजन की पूरी जरूरत को पूरा नहीं कर सका, जिसके परिणामस्वरूप पैदावार में 6.8-12.4% तक गिरावट आई।


जिंक उर्वरीकरण का प्रभाव

0.1% नैनो-जिंक ऑक्साइड का फोलियर स्प्रे गेहूं की पैदावार को 3.7-4.5% तक बढ़ाने में प्रभावी साबित हुआ। इसने नाइट्रोजन के अवशोषण को भी बेहतर किया, जिससे जिंक उर्वरीकरण के महत्व को रेखांकित किया गया।


उत्पादकता पर प्रभाव

130 किलो एन/हेक्टेयर नाइट्रोजन के साथ उर्वरित गेहूं के प्लॉट ने नियंत्रण प्लॉट से 23.2-33.1% अधिक पैदावार दी। इसके विपरीत, 65 किलो एन/हेक्टेयर और नैनो-यूरिया के उपयोग से पैदावार में गिरावट आई, जो नैनो-यूरिया की सीमाओं को दर्शाता है।